यद्यपि भूकंप पूर्वानुमान करने के लिए हाथ न आते रहते हैं, वैज्ञानिक क्षेत्रीय एवं स्थानीय पैमानों पर भूकंप स्रोतों एवं संरचनाओं, सक्रिय भ्रंश मानचित्रण, पुरा - भूकंप संबंधी एवं पूर्वगामी अध्ययन, भूमि कंपन के परिमाणन पर संकेंद्रित अध्ययनों को तेज करने के द्वारा जान माल की अतिसंवेदनशीलता को आँकने के लिए अनवरत प्रयास करना जारी रखते हैं। सीएसआईआर - एनजीआरआई भूकंप संबंधी अध्ययनों और नाभिकीय शक्ति संयंत्रों के आसपास भूकंपों का अनुवीक्षण करने के लिए भारत में 170 से भी अधिक विस्तृत बैंड भूकंप संबंधी स्टेशनों को संचालित कर रहा है। इसके अतिरिक्त, महाराष्ट्र राज्य में विद्यालय प्रयोगशाला कार्यक्रम के अन्तर्गत लगभग 80 शैक्षणिक भूकंप लेखियों को भी संचालित कर रहा है।
प्रायद्वीपीय शील्ड में पूर्वी धारवाड़ क्रेटान और दक्कन ज्वालामुखीय प्रान्त का दक्षिण पूर्वी हिस्सा, उत्तर पूर्वी भारत के उत्तर पश्चिम हिमालय का डोडा - किश्तवार तथा गुजरात के भुज क्षेत्र के लिए अद्यतनीकृत भूकंपनीयता मानचित्र तैयार किए गए। ये अध्ययन गैस पाइप लाइन (गेल, रिलायंस) बिछाते समय, सिंचाई / जल विद्युत परियोजना (केंद्रीय जल आयोग), नाभिकीय शक्ति संयंत्रों (एनपीसीआईएल) के लिए, भूकंप जोखिम मूल्यांकन में बुनियादी इनपुट प्रदान करते हैं। उत्तर पूर्व भारत में किए गए पुरा भूकंप संबंधी अध्ययन इस क्षेत्र में 1869 एवं 1943 के ज्ञात ऐतिहासिक भूकंपों के अतिरिक्त तीन बड़ी से भारी भूकंप घटनाएँ, यथा (i) वर्तमान से 250±25 वर्ष पहले (ii) वर्तमान से 400 से 770 वर्ष पहले और (iii) वर्तमान से 900±50 वर्ष पहले घटित होने के बारे में इंगित करते हुए उत्तर पूर्व भारत के ब्रह्मपुत्रा मैदानों में कोपिली भ्रंश मंडल (के एफ जेड) से भूकंपजनित द्रवण संकेत उपलब्ध कराते हैं। देहरादून, जो कि हिमालयी अग्र क्षेप (एच एफ टी) के समानांतर अधो हिमालयी पर्वताग्र अनावृत होने में पीठ पर सवार द्रोणी (पिग्गीबैक बेसिन) के रूप में पाई जाने वाली एक अभिनतिक घाटी है, में सक्रिय भ्रंशों का क्षेत्र मानचित्रण किया गया है। घाटी में बने स्थल रूप उत्तर चतुर्थ महाकल्प समय के दौरान जलवायु - विवर्तनिक पारस्परिक क्रिया के कारण घटित श्रेणीपरक घटनाओं का संग्रह है। वे, अग्र समानांतर सक्रिय भ्रंशन, जिसने उस समय के दौरान उत्पन्न भू - आकृतिक सतहों और शैल लक्षणों को विरूपित किया, के प्रमाण भी रखते हैं और अधो हिमालय पर्वताग्र में अंतरा - फान (एम बी टी - एच एफ टी) विरूपण विभाजन के प्रमाण को सुरक्षित रखा। ये सक्रिय ढांचे काल गमन में बार - बार के भूकंप संविदारणों की प्रतिक्रिया में बने हैं और उनसे संबंधित प्रमाणों को रखते हैं। अपरूपण - तरंग अभिग्राही फलन तकनीक का उपयोग करते हुए पाए गए अंडमान चाप के समानांतर उथली गहराइयों पर भारतीय महासागरी फलक के फट जाने के लिए भूकंप संबंधी प्रमाण तीन सुस्पष्ट फलन भागों को प्रकट करता है। मध्य स्थलमंडलीय खंड के अंडमान - निकोबार द्वीपों के संपूर्ण लंबाई के समानांतर उत्तरी एवं दक्षिणी भागों के सापेक्ष ~20 किमी का एक आकस्मिक ऑफसेट है। वह एक प्रमुख विशेषता है जो कि अधोपतन विन्यास में फलक विवर्तनिकी एवं भूकंपोत्पत्ति को नियंत्रित करती है। जलाशय प्रेरित भूकंपनीयता के कोयना-वार्ना क्षेत्र में प्रतिबल क्षेत्र की आवधिक फेरबदल का उद्गम केन्द्र संबंधी क्रियाविधि अध्ययनों से पता लगाया गया। सूक्ष्म - भूकंपनीयता का अनुवीक्षण करने के लिए वहाँ एक विशिष्ट 6 स्टेशन वेधछिद्र नेटवर्क की स्थापना की गई।
गुजरात में भुज क्षेत्र की भूकंप उत्पत्ति का अध्ययन 11 तीन-घटक विस्तृतबैंड भूकंप लेखियों के कच्छ भूकंपी नेटवर्क, 10 प्रबल-गति त्वरणलेखियों और चार विस्तृतबैंड भूकंप लेखियों का उपयोग करके किया गया है, जिसने तीन सुस्पष्ट स्रोत मंडलों: पू - प झुकाव वाला उत्तर वागड भ्रंश, पू - प झुकाव वाला गेडी भ्रंश और उ प - द पू झुकाव वाला बन्नी भ्रंश, को परिभाषित करने में मदद की है। इसके अलावा, वहाँ 1819 अल्लाह बाँध (ए बी फ), द्वीप पट्टी क्षेत्र (आई बी फ) और काटरोल पहाड़ी (के एच एफ) भ्रंशों के समानांतर विसरित सूक्ष्म भूकंप गतिविधि देखी गई। आंकड़ों का विस्तृत विश्लेषण पृथ्वी की अभ्यन्तर के भौतिक गुणधर्मों को अभिलक्षणित करना और इस क्षेत्र में विविध भूकंपी स्रोतों के कारण भुज के संदर्भ में भूमि गति का संश्लेषण करना संभव हो पाया।
संपूर्ण उपमहाद्वीप को समावेश करते हुए स्रोत लक्षणों और पी - और एस - तरंग क्षीणन पर आधारित अध्ययन हिमालय, बर्मी चाप और पश्चिमी भारतीय क्षेत्रों के समानांतर स्थैतिक प्रतिबल पात के असमान वितरण को सूचित करते हैं। यह सूचित करता है कि उत्तर-पश्चिमी हिमालय और बर्मी चाप क्षेत्रों की तुलना में केन्द्रवर्ती हिमालय न्यूनतर प्रतिबल पात के कारण बारंबार भूकंपों के लिए संभाव्यता रखते हैं। परिणाम बताते हैं कि माध्यिका प्रतिबल पात भूकंप क्रियाविधि से कोई संबंध नहीं रखते हैं।
नाम |
पदनाम |
डॉ. डी. श्रीनगेश |
मुख्य वैज्ञानिक |
डॉ. पूर्णचन्द्र राव एन (एन सी ई एस एस, तिरुवनंतपुरम में प्रतिनियुक्ति पर) |
मुख्य वैज्ञानिक |
डॉ. रवि कुमार एम (आई एस आर, गांधीनगर में प्रतिनियुक्ति पर) |
मुख्य वैज्ञानिक |
श्री विजय राघवन आर |
प्रधान वैज्ञानिक |
डॉ. सीमांचल पाढ़ी |
प्रधान वैज्ञानिक |
डॉ. शेखर एम |
वरिष्ठ वैज्ञानिक |
श्री सतीश साहा |
वरिष्ठ वैज्ञानिक |
श्री सतीश कुमार के |
वैज्ञानिक |
श्री नब कांत बोरा |
वैज्ञानिक |
डॉ. शशिधर डी |
वैज्ञानिक |
श्री सीएच. नागभूषणराव |
वैज्ञानिक |
श्री शर्मा ए. एन. एस |
प्रधान तकनीकी अधिकारी |
श्री मूर्ति वाई. वी. वी. बी. एस. एन |
वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी (3) |
श्री सॉलोमोन राजू पी |
वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी (3) |
श्री बरुआ बी. सी |
वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी (3) |
श्री वेंकटेश वेंपटि |
वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी (1) |
श्रीमती उमा अनुराधा एम |
तकनीकी अधिकारी |
श्री गूडपाटि सुरेश |
तकनीकी अधिकारी |
श्री श्रीनिवास डी |
तकनीकी सहायक |
श्रीमती मल्लिका के |
तकनीकी सहायक |
श्री साई दीक्षित |
तकनीकी सहायक |
श्री सुनील कुमार राय |
तकनीकी सहायक |
श्री संजीब घोष |
वरिष्ठ तकनीशियन (2) |
श्री शंकर ए.पी |
वरिष्ठ तकनीशियन (2) |
श्री रवि कांता राव पी |
प्रयोगशाला सहायक |
श्री पूर्ण चंद्र ब्रह्मा |
ड्राइवर (ए सी पी) |
श्री शर्मा के. आर |
मल्टी टास्किंग स्टाफ |
पृष्ठ अंतिम अपडेट : 14-07-2023