अधस्तल में तापमान अनुमान पृथ्वी विज्ञान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो कि खनिज निक्षेपण, पेट्रोलियम क्षेत्र और भूगतिकी को नियंत्रित करता है। अधस्तल में तापमान अनुमान केवल सतही ऊष्मा प्रवाह को प्रतिरूपित करने, तापीय चालकता और रेडियोसक्रियताजन्य ऊष्मा उत्पादन डाटा के साथ-साथ भूवैज्ञानिक एवं भूभौतिकीय जानकारी के माध्यम से संभव हो सकता है।
पिछले साढ़े पाँच दशकों से तापीय भूभौतिकी समूह, जो कि पहले ऊष्मा प्रवाह समूह के रूप में जाना जाता था, भारतीय शील्ड के विभिन्न भूवैज्ञानिक प्रांतों में ऊष्मा प्रवाह आंकड़े प्राप्त करने में, साथ ही तापीय चालकता, तत्संबंधी शैलसमूहों के रेडियोसक्रियताजन्य ऊष्मा उत्पादन का मापन, स्वस्थाने एवं प्रयोगशाला दोनों में, करने में शामिल रहा है। उपर्युक्त डाटा सेटों को भूपर्पटीय और अधो-पर्पटीय महाद्वीपीय स्थलमंडल को प्रतिरूपित करने के लिए उपयोग किया गया।
किए गए ऊष्मा प्रवाह अध्ययनों से प्रकट होता है कि (i) ऊष्मा प्रवाह कैम्ब्रियनपूर्व प्रांत (उदाहरण के लिए बुंदेलखंड क्रेटॉन, धारवाड़ क्रेटॉन, बस्तर क्रेटॉन, दक्षिणी कणिकाश्म प्रांत) और क्रिटेशस दक्कन ज्वालामुखीय प्रांतों में आम तौर पर कम (<60 mWm-2) है, लेकिन 25 से 62 mWm-2 के बीच बदलता है, (ii) प्रोटीरोजोइक अरावली प्रांत, सिंहभूम क्षेप क्षेत्र, प्रोटीरोजोइक कडपा द्रोणी, सीनोजोइक कैम्बे द्रोणी में थोड़ा अधिक (51 से 96 mWm-2), (iii) गोंडवाना द्रोणियों, उदाहरण के लिए दामोदर, गोदावरी, महानदी, सतपुड़ा, में सब से अधिक (46 से 107 mWm-2)। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि मोहो में तापमान के अनुमान विभिन्न भूवैज्ञानिक प्रांतों में व्यापक रूप से (250 से 5500C) बदलते हैं।
दक्षिणी भारत में एक विशाल कणिकाश्म भूभाग से लिए गए कणिकाश्म पर किए गए हमारे क्रमबद्ध रेडियो तात्विक अध्ययन से पाया गया है कि कणिकाश्म हमेशा रेडियो तत्वों में कम नहीं होते हैं, जैसा कि पहले के अधिकांश प्रतिरूपण में माना जाता था, परन्तु रेडियो तत्वों और रेडियोसक्रियताजन्य ऊष्मा उत्पादन में ग्रेनाइट जितने ही ज्यादा हो सकते हैं। पूर्वगामियों / भा-अश्मों में अंतर अथवा कणिकाश्मों के कायांतरण अथवा पश्च कायांतरण की दाब-तापमान अवस्थाओं में अंतर कणिकाश्मों के अन्दर देखी गई विविधताओं के लिए उत्तरदायी है।
बुन्देलखंड क्रेटॉन के रूप में जाने जाने वाले ग्रेनाइटी प्लूटॉन पर किए गए हमारे क्रमबद्ध रेडियो तात्विक अध्ययन ने इंगित किया कि क्रेटॉन को तीन अलग-अलग रेडियो तात्विक क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है जिनको दिक्काल में क्रेटॉन के क्रमिक विकास के साथ सहसंबंधित किया जा सकता है। उपर्युक्त परिणाम भारतीय शील्ड की भूगतिकी के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखते हैं।
प्रयोगशाला में ग्रेनाइटों और कणिकाश्मों पर उच्च तापमान पर तापीय चालकता और तापीय विसरणशीलता, जो अधस्तल के तापीय प्रतिरूपण में महत्वपूर्ण पैरामीटर है, की भी जांच की गई।
विविध मिश्रित प्रतिरूपणों का उपयोग करके खनिजीय आंकड़ों और खनिज तापीय चालकताओं से विभिन्न प्रकार के ग्रेनाइटों और कणिकाश्मों को समावेश करते हुए बड़ी संख्या में प्रतिनिधिक नमूनों पर तापीय चालकता अनुमान भी लगाए गए हैं और यह बहुत ही महत्वपूर्ण परिणाम की ओर इंगित करता है कि ग्रेनाइट और कणिकाश्म चट्टानों के लिए तापीय चालकता का अनुमान लगाने हेतु हरात्मक माध्य प्रतिरूप सर्वोत्तम प्रतिरूपों में से एक है।
महासागरीय डाटा का तापीय प्रतिरुपण एक सबसे पुरानी महासागरीय पर्पटी (135 मिलियन वर्ष पुरानी) में उष्णजलीय प्रमाण के अस्तित्व को प्रकट करता है जो कि महासागरीय भूऊष्मिकी के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण निष्कर्ष है।
शैल यांत्रिकी प्रयोगशाला, भारतीय शील्ड और हिमालय को समाविष्ट करते हुए, शैलों और संबंधित पदार्थों का उनके शैलभौतिकीय (जैसे घनत्व, पराश्रव्य वेग, चुंबकीय सुग्राहिता, विद्युत प्रतिरोधकता और सरंध्रता) और यांत्रिक गुणधर्मों (एकअक्षीय सामर्थ्य, तनन सामर्थ्य, अपरूपण सामर्थ्य, संसंजन और आंतरिक घर्षण का कोण) के शब्दों में अभिलक्षणन करने वाला भूभौतिकीय अनुसंधान करती है। इस प्रयोगशाला के आंकड़े भूकंप-विवर्तनिक अध्ययन, खनन एवं इंजीनियरी अनुसंधान, खनिज एवं हाइड्रोकार्बन अन्वेषण, और भूपर्पटी एवं स्थलमंडल के भूभौतिकीय प्रतिरूपण के लिए उपयोगी हैं। शैल यांत्रिकी के सिद्धांत ग्रहीय भौमविज्ञान अनुसंधान, विशेषकर उल्का पिंड संघट्ट गर्तन प्रक्रियाओं, भूकंप-विवर्तनिकी और ग्रहीय पिंडों को प्रभावित करने वाले शैल विखंडन के क्षेत्रों में भी अनुप्रयोग किए जाते हैं।
नाम | पदनाम |
डॉ. लबोनी रे | वरि. वैज्ञानिक |
डॉ. लक्ष्मी के.जे.पी. | वरि. वैज्ञानिक |
श्री रवि. जी. | तकनीकी अधिकारी |
श्री रवीन्द्र एस | तकनीकी सहायक |
श्री शाम ए | प्रयोगशाला सहायक |
पृष्ठ अंतिम अपडेट : 21-08-2020